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आब न हर! परतारिअ, भबसँ तारिअ हे / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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आब न हर! परतारिअ, भबसँ तारिअ हे,
दगधल मन बहटारिअ, बूझि न टारिअ हे।
हमर हृदय बड़ हलचल, हिअबिच हलचल हे,
थाकल पद दुहु निर्बल, सग न संवल हे।
रहलहुँ दुखक झमारल, विपतिक मारल हे,
जीवन जीबि बिगाड़ल, मन नहि गाड़ल हे।
अपनहि आगि पजारल, सब सुख जारल हे।
आदि न मेल सम्हारल, पौरूषहारल हे।
मनलहरल, हि हहरल, लोचन झहरल हे,
हर न हरल दुख देखल, खल हँस खलखल हे।
विषय विषहि मन बाँटल, बाट न सूझय हे,
विलटल लटल-बुड़ल मति, बात न बूझय हे।
मन-नभ दुख - धन छारल, पकड़ि पछाड़ल हे,
साहल सन्मति दूरहि, कुमति बेसाहल हे।
‘अमर’ सुयश पद गाओल, आश लगाओल हे,
शिक शरण गहि सेवल, से बल पाओल हे।