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आब भरि गेल दर्दक इनार लगैयै / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
हमरा अहाँ बिन जिनगी अन्हार लगैये।
अहाँ मानी ने मानी बेकार लगैये।
संग अहाँ तँ सोलहो सुरूज उगल
उगल चान इजोरिया अन्हरिया डुबल
बिना सरगम आ सुरक सितार लगैये।
अहाँ मानी ने मानी बेकार लगैये।
अहाँ रूसलहुँ तँ रूसल साजल सिंगार
हमर सिसकैत सींथक सेनुर उधार
आब उसरल-उपटल बाजार लगैये।
अहाँ मानी ने मानी बेकार लगैये।
मन मन्दिर मे दीप जरय बाती बिना
हम तृषित-पिपासित स्वाती बिना
नोर गंगा आ यमुनाक धार लगैये।
अहाँ मानी ने मानी बेकार लगैये।
चोट लागल मन कें मनाबै छी हम
बिना फूलक हार सजाबै छी हम।
आब भरि गेल दर्द इनार लगैये।
अहाँ मानी ने मानी बेकार लगैये।