भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आभास / श्रीकांत वर्मा
Kavita Kosh से
दूर उस अँधेरे में कुछ है, जो बजता है
शायद वह पीपल है ।
वहाँ नदी-घाटों पर थक कोई सोया है
शायद वह यात्रा है
दीप बाल कोई, रतजगा यहाँ करता है
शायद वह निष्ठा है ।