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आभा / गुलाम मुहीउद्दीन ‘गौहर’

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आते-आते ही
शोर मैंने मचा लिया था
‘नहीं यहाँ आऊँगा
मुझे
कहाँ ले आए हो’’
मैंने शोर मचाया ज्योंही
ठूँस दिया गया स्तन मेरे मुँह में
मानों मेरा गला ही घोंटा गया हो
क्षण भर हुआ तो
भूल गया मैं सब कुछ
फिर से रोया तो
झुलाया गया मुझको
मैं उड़ जो गया
तो कह दिया नया
साया पड़ा है इस पर
ओझा बुलाए गए
मन्नतें माँगी गई

हे प्रभु!
तब से यह तेरी दुनिया
हर सच पर
मेरा गला दबा रही है
कभी बरसाती है फूल मुझ पर
कभी मेरी लल्लो-चप्पो करती है
कभी ठहराती मुझको पगला
यह अपने होने का प्रदर्शन
यह पद, यह वैभव
है झूठ देवा
है झूठ देवा
मेरी है इच्छा वापसी की
मुझे ले चल यहाँ वापस
सच्चा सुख सत्यता में है।