हम साले कोई बेवक़ूफ़ हैं, 
जो मरने के लिए पैदा हुए हैं ... 
जब तक हवा को 
चादर और आकाश को रस्सी में नहीं बदल देंगे : 
तब तक नक्षत्रों की खिल्ली उड़ाएँगे हम ! 
हमने ख़ुदकुशी करने के जज़्बात 
समुन्दर में फेंक दिए हैं 
और अपनी बाँहों में 
तमाम अजूबों को 
चमगादड़ों की तरह लटका लिया है । 
हथेलियों की ताक़त केवल लकीरों में नहीं बन्द होती, 
उसे सूँघना पड़ता है : 
और मिट्टी की नस्ल साफ़-साफ़ 
अक्षरों में तड़पने लगती है । 
मज़ा ही मज़ा ही : 
जब व्यक्ति अपने आह्वान् से 
आन्दोलित हो उठता है और शताब्दी और इतिहास 
और रास्ते में दौड़ते हुए पेड़, केवल घटक लगते हैं 
काल और दिक् के : 
हम चेतना के आयामों की परिकल्पनाओं को 
थाती की तरह 
चार पैंरों वाले जानवर या दो कानों वाले पशुओं में 
नहीं बाँटते; उन्हें पाने के लिए हम उद्घोषणाएँ भी 
नहीं करते, करवाते : पर हम वह 
सुरंग जानते हैं जो 
नक्षत्रों के भीतर है : हमने 
वह दीवार ढूँढ़ ली है 
जिसके पार तुम देख सकते हो 
और अन्धड़ हो सकते हो 
और तमाम राजपथों के नाम अपनी विरासत में 
बाँट सकते हो : 
तुम समझते हो 
मार्क्स, गांधी, नीत्शे या बुद्ध और लिंकन : 
रूसो, लेनिन, इनके पास चमत्कारी हथियार हैं 
जो कभी भी कपड़े, 
रोटी, ढाल, सन्तुष्टि, अहम्, अहिंसा और स्वतन्त्रता : या 
प्राकृतिक जिघांसा में बदल सकते हैं और 
तुम्हारे लिए नमकीन क्रान्ति का आह्लाद बन सकते हैं । 
हम इनके पार की बात जानते हैं : हम उद्घोषणाओं और छोटी 
या बड़ी सुविधाओं और नारों में स्वयं को 
परिभाषित नहीं करते :
हम किसी के पिट्ठू नहीं हैं : 
न गधे हैं, न रास्ता तय 
करवाने के टट्टू : हम अकेले भी नहीं; हम दुकेले भी 
नहीं; हम गिनती में नहीं; और गिनती के पार होने का 
सम्वाद भी जानते हैं । 
साफ़ है : हम वो बेवक़ूफ़ नहीं हैं : जो मरने के लिए 
पैदा होते हैं। 
हम हवा को साँस लेने की वस्तु 
समझते हैं, फाँकने की नहीं : हम 
आकाश को फलाँगने 
की क्रीड़ा में आनन्द लेते हैं : बाँटने की नहीं !
 
हम उन्हीं तक पहुँचते हैं जो वास्तविक सम्वाद 
से गुज़रते हैं : हम प्रलाप और संलाप और 
आलाप सभी को चबाते हुए 
दिक् और काल को मुठ्ठी में बाँधे हुए : तुम्हारा 
इन्तज़ार कर रहे हैं : 
तुम्हारे स्वागत में हम 
कोई भी अजूबा कर सकते हैं : तुम केवल 
घूरना शुरू कर दो : 
चाहे भीतर 
चाहे बाहर और संकल्प लो : 
हम वह बेवक़ूफ़ नहीं 
जो मरने के लिए पैदा होते हैं ।