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आमीन / रविकान्त
Kavita Kosh से
आज मैंने शरद के पूरे चाँद को चूमा
चाँद को चूमा कई बार
चूमा ऐसे मानो मेरे गले से लगा हो वह
चूमा ऐसे मानो हाथों से टिका हो
खूब-खूब चूमा चाँद को मैंने आज
आज उससे मन की बातें ही नहीं
प्रार्थनाएँ भी कीं उससे
इन दिनों जो बात बहुत उमड़ रही थी मन में
जी खोल कर कही मैंने उससे
उसने दुआएँ भी दीं
मुस्कराया भी
चाँद ने मुझे थपथपाया भी!
सहरी करके आ रहा
कोई भोर का पंक्षी
चाँद को पार करता हुआ
कह गया 'आमीन' भी
आज खूब गुफ्तगू हुई चाँद से मेरी