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आमुख / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
’गीत-विहग उतरा’ आपके हाथों में है, इसकी मुझे ख़ुशी होना स्वाभाविक है।
मेरे गीत यदि आपके किन्हीं सुप्त भावों को, मानसिक सुखद चित्रों को और
स्मृतियों के स्वरों को छूकर जगाते हैं तो साधना में सबसे छोटा होकर भी
मैं आपके निकट गीतकार के रूप में आने के लिए अपने को अधिकारी समझूँगा।
मेरा निवेदन है कि इन गीतों को किसी भी विशिष्ट सन्दर्भ में रखकर न पढ़ा
जाए। यदि आप आयतन में रखकर इन गीतों को पढ़ेंगे तो मुझे आशंका है कि
रसास्वादन की बात तो दूर, आप वर्तमान काव्य सम्बन्धी वाद-विवादों को प्रश्रय
न देने लगें।
पुनः मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इन गीतों को सर्वथा अपराश्रित भाव एवं स्वर
का आधार लेकर पढ़ें तो आपको इनके मर्म का सहज उद्घाटन होगा।
-- रमेश रंजक