भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आम्रपाली / कोनहारा / भाग 7 / ज्वाला सांध्यपुष्प

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोटिआएल सैनिक मग्गह के
ब्यूह जेन्ना ऊ पद्म-समूह।
तइआरी करे आक्रमण के
खूब करे अब उ हूह-हूह॥60॥

हमला कएलक अजात मिलकअ
दुश्मन पर कसकऽ एक्के बेर।
बम्म बोले लग्गल अब सैनिक सऽ
टिक्कल न तब ऊ तनको देर॥61॥

काटे लग्गल फरसा से मग्गह
बज्जी के घेंटी बरी जोर।
समर जीते के खुशी में अब
मचाबे खुब मग्गह हरहोर॥62॥

अजात गोस्साएल बरबराइ’
नौ-छौ कर देम हमहु अखनि।
हारम चाहे जीतम हम सब
एक्कर परबाह केक्करा कखनि॥63॥

तीर चलइअ तलबार नचइअ
कुट्टी कटइअ छपोट-छपोट।
छप-छप गिरे मरल सैनिक जल में
उठबइअ इ कोई हँसोत-हँसोत॥64॥

घबइल बज्रनाभि के देखकऽ
काप्यक बुझलन होएल नाश।
तीर लग्गल अभीति के जखनी
बुझलन बच्चल न कोनो आस॥65॥

सोच-बिचार खुब कएलन काप्यक
जीते के न रहल जोगार।
फहरएलन उज्जरका झण्डा उप्पर
युद्ध के झण्डा देलन उतार॥66॥

आत्म-समर्पण के अलाबे अब
रहे न कोनो एक्कर उपाय।
साधन-सैनिको के कम्मी से
बन गेल अखनी इ असहाय॥67॥

सैकड़ों सैनिक सऽ पकड़ाएल
राजा किला अन्दर नजरबंद।
खोजइत, ढुँर्हइत अजात चलल
रजधानी में उ राजहंस॥68॥