आम्रपाली / कोनहारा / भाग 8 / ज्वाला सांध्यपुष्प
पहुँच बैशाली ढुर्हे सनकल
पोखर, गाछी राते-रात।
पुष्करिणी के सरसिज देख ऊ
बूझे इ नगरबहु के गात॥69॥
बइठल अचेत चैत्य से पुछे
कन्ने गेल नर्तकी अम्रपालि।
कोनो विध से समेटम हम
अरुण-सुरुज अब तोहर लालि॥70॥
रातो-रात पहुँच गेल अजात्
बर्षकार से करे ऊ भेंट।
-‘हम्मरा आगु लाबऽ अम्रपाली
न तऽ काटम अब तोहरो घेंट॥71॥
विकराल रूप काल के देख
इ पंडित थर-थर करे अपार।
-डरे हम्मरा भागल उ युवती
करइत होत कहउँ अभिसार॥72॥
लउटल वैशाली से अजात
मन में धएले इ सुन्दर आस।
रमचउरा नगर पहुँचल तुरत
करे ला नर्त्तकी के तलाश॥73॥
पहुँचइते पता चलल, बन्दी हए
अब उ युवती ओक्करे जाल।
भेस बदलकऽ नाचल खूब ऊ
अजात के उप्पर जेन्ना काल॥74॥
लग्गल कचहरी मग्गहराज के
बन्दी सऽ के सुनबाई भेल।
‘अम्रपालि’ नाम सुनइते सुन्दरि
अजात के लग उ पहुँच गेल॥75॥
-‘तोहर काम से खुश ही हमहु
तोरा ला लइली उपहार।
बनऽ हम्मर रानी, तू राज करऽ
बैशाली पर, होअऽ तइआर॥76॥
चीज तोरा ला निम्मन लइली
बज्जी संघ अइसन जितली राज।
करऽ तू शासन बइठ सिंहासन
अब तोड़ऽ न दिल इ तिल्लुक काँच॥77॥