आम्रपाली / कोनहारा / भाग 9 / ज्वाला सांध्यपुष्प
-‘तोहर देल उपहार इ एगो
हम्मरा से अखनी सम्हरे न।
कट्टलऽ सब्भे घेंटी बज्जी के
तइयो इ बगइचा उज्जड़े न॥78॥
-‘प्रसंग बदलकऽ हम्मरा से अखनि
नुकाबऽ न तू अप्पन अपराध।
भेष बदल तू कएलऽ गलती
तोरा साध कोनो न कहत साध॥79॥
-‘भेस बदलनाइ इ गलती हए
तब तऽ तूही हतऽ बरका चोर।
युबती के भीर वृद्ध भेष में
तू खड़ा रहऽ कहियो कल जोड़’॥80॥
आँख लाल बना तुरत अखनी
लागल कछमछाए इ अजात।
सैनिक अधिकारी के सामनहि
लग्गल गरिआबे हो हताश॥81॥
-‘सांसद कि तू बनलऽ बज्जी के
भूल गेलऽ अप्पन तू ओकाद।
न तऽ तुहू बईठ चउक पर
कए किसिम के चटतऽ सोआद॥’82॥
सुन अपशब्द सिर झुकएलक
अम्रपाली न बूझल होएल अपमान।
माथा झाँप अँचरा से, कहे-
‘हमहूँ हतियो तोहर माए॥’83॥
अजात के लागे मजाक इ
विदेह हए ओक्कर ननिहाल
एहे नाता से जेन्ना उ
कान-कान कहे अप्पन हाल॥84॥
-‘रहि जुआन जखनि हम बाबू
हम्मरो रहे एगो अइसन शान।
सामंत अमीर के कोन कहे
राजा सम्राट देवे जान॥85॥
रूप के धुन सुन हम्मर अइसन
आएल सम्राट तुरङ सबार।
सात दिवस साथ रहल हम्मरा
आँख में बसएलेउ कहार॥86॥