आम्रपाली / तथागत / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प
माघ महिना के ठंढ़ा सहकल।
एपर पुरबा हबा हए बहकल॥
पत्ता-पत्ता बगिआ के डोले।
अएतन कोनो, कगबा बोले॥1॥
गेना-गुलाब इ हँसइअ सबतर।
पत्ता केरा के करईअ सर्-सर्।
चिरई चुनइअ दाना रह-रह।
गाइ चरईअ घास निरन्तर॥2॥
हबा खूब हकइअ हीआँ।
फूल खिलल गमकइअ हीआँ॥
सुरुज माथा पर अब आ गेल।
आम्रबन पर खूब उ छा गेल॥3॥
अममा के बगिअ बीच बइठल।
जेन्ना कक्ष में ई मूर्ति सँइतल॥
बीणा बजबइअ उ कखनी से।
पएरा ताके ऊ कखनी से॥4॥
बीणा के बजबइअ कइसे।
बून समुन्दर समाएल जइसे॥
होस न तनको ओक्करा रहल।
बजबइऽ बीणा सबकुछ भूलल॥5॥
बीणा बजाबे गुन-गुनाबे।
कखनियो लजाकऽ सिर झुकाबे॥
कखनियो धुन गंभीर बजबइअ।
लोरो कखनियो गिरे लगइअ॥6॥
स्वाद संसार के होएल फिक्का।
प्रेम प्राणी के हए इ खिच्चा॥
फूल के देखहु खूब हँसइअ।
अदमी-अदमी के गोर घिचई’॥7॥
पुरुष पाँच पंचायत करइअ।
निलय में नारी साँस गिनइअ॥
पुरुष के करम सम्मान आई।
अएतन हीयाँ भगवान् आई॥8॥
भगवान् अएतन संघ के साथ।
पूरा होएत अब हम्मर साध॥
माथा पर हाथ हम्मरा रखतन्।
संघ में शामिल हम्मरा करतन्॥9॥
आँख बन हए अउँरी नचइअ।
संघ आकअ अब खड़ा तकइअ॥
धुन के धुआँ हए इ छितराएल।
नगर बहु उ ओमें भुतलाएल॥10॥