आम्रपाली / तथागत / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प
खरा बुद्ध हतन बृद्ध नाहित।
आनन्द हरदम लाठी नाहित॥
रमणी देख शिष्य सऽ घुम गेल।
रहलन गौतम जहर पिए लेल॥11॥
देखइत रहलन तपस्वनी के।
सुनइत रहलन उ सरस्वती के॥
संगीत के दाहर रुक्कल अब।
बुद्ध देख अम्रपाली उट्ठल तब॥12॥
अम्रपाली उठ प्रणाम कएलक।
भगवान् के तब आसन देलक॥
अब गौतम अप्पन मुँह खोललन।
प्रणाम के न स्वीकार कएलन॥13॥
प्रणाम् के अधिकारी हए नारि।
कएलक काम जे नर से भारि॥
आसन चाही हुनका उँच्चगर।
चलित्तर हुनकर केत्ता मिठगर॥14॥
-‘आनन्द बइठऽ सब कोई हियाँ।’
-‘कहाँ हए भिक्षु एक्को गो हीयाँ॥’
सूर्य-प्रकाश से रह गेल दूर।
ताल भुतलाएल, कहँइ हए सुर॥15॥
बुद्ध देलन आदेश आबे के।
भिक्षु सऽ आएल आँख झाँप के॥
बइठल सब्भे पलथिया मार कऽ।
आँख न खोललक उ सऽ भूलकऽ॥16॥
-‘आनन्द आँख खोलऽ तू अखनी।’
-‘भगवान् परीक्षा न लीउ अखनी॥’
-‘मुँह मोड़ सत्य से जीबऽ केन्ना।
बिचार-तुला रहत डोलत जेन्ना॥17॥
प्रज्ञा संतुलित होएत ज्ञान से।
शरीर पुष्ट होएत व्यायाम से॥
केश काट हम भिक्षुक भेली।
जग से कट हम जग से गेली॥18॥
काषाय वस्त्र इ शिक्षा देइअ।
जल में रह कऽ तू जलो न पीअ॥
जे जल से जखनि निकल जायत।
उ अपने आप तब मर जायत॥19॥
करत न जग के दुख से सुरक्षा।
माङल बइठ ऊ दिन भर भिक्षा॥
भिक्षा-पात्र ओक्कर भर जाएत।
मुदा रुग्णता न जग से जाएत॥20॥