Last modified on 26 जनवरी 2020, at 15:01

आम्रपाली / तथागत / भाग 5 / ज्वाला सांध्यपुष्प

दुख से पूरा जग हए आहत।
करुणा, मैत्री से हए राहत॥
कर काम जे खाएत-खिलाएत।
दलिद्दर-राकस कहियो न आएत॥37॥

समा एकता के हए मुलमन्त्र।
टिक्कल एहे पर हम्मर इ गणतन्त्र॥
बइठल-बइठल इ मुनफ्फा करत।
विरोध ओक्कर श्रमिक सऽ करत॥38॥

खाली ब्राह्मण इश्वर के जानत।
दुनिया भर के दुख में सानत॥
सिर मुड़ा केन्ना होएत श्रमण।
अनपर्ह जेन्ना होएत ब्राह्मण॥39॥

जलम से जुट्टल जात बेबस्था।
चारो बरण के चार अबस्था॥
ब्राह्मण माथा अप्पना के बुझे।
शूद्र अज्ञानी उ माथा धुने॥40॥

जग-जाप, भजन आउर तपस्या।
मेटाएत न एक्करा से समस्या॥
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय।
कइसे इ वर्ण-बेवस्था मेटाय॥41॥

परह्त न वेद अब्राह्मण इ गारि।
नारी पशु से न हए अगारि॥
दुन्नो के सम्यक् उत्थान के लेल।
समझअ ई संघ स्थापित भेल॥42॥

जाति-वर्गहीन समाज चाही।
शोषण से मुक्त हिसाब चाही॥
उत्पीड़ित होइअ नारी हियाँ।
शुद्रो से गिरल नारी हीयाँ॥’43॥

-‘निर्वाण पद प्राप्ति निम्मन प्रसाद।
सब संघ में शामिल होएला अजाद॥
धन-दौलत से न कोनो मम्मत।
कामिनी एमे केन्ना सम्मत॥44॥