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आम्रपाली / तथागत / भाग 6 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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नारी के जे सउनम संगम में।
श्रमण सअ जाएत रसातल में॥
दुख दुनिया से भागत केन्ना।
इ नाग पोस न मानत जेन्ना॥45॥

संघ्ज्ञ अरमरा कऽ अखनी गिरत।
जग के तहिया इ कुच्छो न मिलत॥
रउआ आगु शीश झुकबइत हति।
अम्रपाली ला ‘हँ’ करईत हति॥46॥

-‘वासना-भुजंग न रहत सूतल।
जहिया एक्करा कोनो छूतन॥
फुफकार कऽ ई उठकअ बइठत।
करत् जे गलती ओक्करे डँस्सत॥47॥

साँप से तुहूँ अब बचकऽ रहऽ।
मन-लाठी से ओक्करा न छूअ॥
रहत जग में ई सब्भे प्राणी।
काम, क्रोध अनर्थ आ मनमानी॥48॥

‘सात धर्म’ आधार इ संघ के।
खून हए इ लिच्छवी गणतंत्र के॥
छोड़कऽ एक्करा न संघ जियत।
नारि अपमान कऽ धर्म न रहत॥49॥

बरोबर जे सऽ बइठक करतन।
विधान के जे सऽ इज्जत करतन॥
योग्य, नर, वृद्ध खूब पूजनीय।
महिला, मंदिर खूब बंदनीय॥50॥

नारी के सम्मान देकअ, कएलअ बरका काम।
संघ के समाप्त होहूं पर, रहत तोहरो नाम॥
रहत तोहरो नाम, आनन्द! सानन्द जग जियत।
रुग्णता, जरा, मरण से, लोग न मखनियो डरत॥
नारी सम्मान लेल, संघ भेल आइ अगारी।
धर्म ओहे हए निम्मन, जे में बरोबर नारी॥’51॥

अम्रपालि तुरत आम से, बुद्ध के स्वागत कएलक।
बेमौसम के आम खा, श्रमण सअ गुण गएलक॥
श्रमण सअ गुण गएलक, इज्जत कएलक नारी के।
दान देलक् आम्रवन, एक्कर काम न नारी के॥
संन्यास देबा हम्मरा, दऽ भिक्षा-पात्र खाली।
अमिताभ के गोर पकड़ खुब कहे अम्रपाली॥52॥