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आम्रपाली / युद्ध / भाग 13 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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टुटल अस्त्र आ फट्टल वस्त्र, उघाड़ कपार अजात्।
तितिर नाहित नाचे नर, गिरल बनल मोस्मात॥115॥

काली के कर परनाम, उट्ठल बज्जी के हाथ।
उप्पर ताक आँख पथराएल, सुरुज के न हए गात॥116॥

सुरुज डूब उबारलक उ, अजात-जीवन-नाव।
न तऽ विशाल काल बन ई, खड़ा हए एहे ठाँव॥117॥

आँख अजात के बन हए, अब डरे उ खुलइअ न।
परल मरल जक्ता उ दुर्बल, अब जीता बुझाइअ न॥118॥

पएरा ताके गिरल ऊ, अन्त समय में अखनि।
रवि डूबल, शन्ख बज्जल तऽ, फुरफुरा घस्कल कखनि॥119॥

सम्राट सजग डुबल अर्क के, करे खूब नमस्कार।
लउटइत् योद्धा के कहे, कल्हे करिहऽ इन्तजार॥120॥

युद्ध के घाएल सैनिक सअ के
सेवा-चिकित्सा करे अम्रपालि।
ओक्करा पाछे झुण्ड-के-झुण्ड हए
परिचारिका बनल ओक्कर आलि॥121॥

घबइल अङ-प्रत्यङ के सब्भे
काट तुरत अल्लग हटबईअ।
चीर-फाड़ जइसे जेन्ना कअ
बाद में भैषज उ भरईअ॥122॥

मरल सहस्त्रों सैनिक देखकअ
अम्रपाली अब खुब कनईअ।
डोम उद्धारक के मदत लेकऽ
शव सबके परबह् करबईअ॥123॥