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आम्रपाली / राजगीर / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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नाचत अइसन परी सन, दिल पर तोरा चरह्ल।
कुहकत कइसन कान में, कोइली तब उ बनल॥
कोइली तब उ बनल, तोहरो हिया धक्-धक् करत।
जे-जे देखत दिनकऽ, रात-भर उ छट्-पट् करत॥
देखऽ न तनि ओक्करा, याद तोरा खुब सालत।
लाबऽ ओकरा हीयाँ, देखिहऽ कइसन उ नाचत॥11॥

भगवान बइमान बरका, हए हम्मरा तरसएलक्॥
देखअ तऽ वैशाली में, मोती इ बरसएलक॥
मोती इ बरसएलक, अब बोलऽ केन्ना मिलत।
लाबऽ ओकरा अखनि, न तऽ इ मन-मजूर न हिलत॥
हँसोतम् ओक्कर रूपधन, अब लेली मन में ठान।
बताबऽ रस्ता लाबे के, तुहूँ हम्मर भगवान॥12॥

रूप राम के रूप हए बरे बिजुरि लेखा इ
पाबऽ ओक्करा जे बिध, जनतन् बाबा सोखा इ॥
जनतन् बाबा सोखा इ, बतएतन् रस्ता लाबे के।
बज्जि देस में जाकऽ, तू हिम्मत रक्खऽ पाबे के॥
बिझिआएल मन पर उ, मंत्री सान चरहाबे खूब।
सुतल सम्राट साँप सन्, लग्गल फुफ्कारे देख रूप॥13॥

दारू आएल कए किसिम के, मंत्री ला मछरी अब।
जोस में तनको होश न, दमरि हए कि लमरी अब॥
दमरि हए कि लमरी अब, सांझे न हुनका सुझइअ।
कोन रोग धर लेलक, मंत्रिओ सुनीध बुझइअ॥
सुरूज ओङराएल हँस्से, सम्राट कहे दिया बारू।
उप्पर ठमकल सुरूज, भीतर बमकइम अब दारू॥14॥

हम कोन देस न जितलि, कोन घाट न गेलि।
सुङल फूल के सुङली न, कोन तुरङ पर न चरह्लि॥
कोन तुरङ पर न चरह्लि, कहे कीर्ति जरासंध के।
टिक न सक्कल दुश्मनों, कि कमाल कहुँ इ वंश के॥
हम तगतगर राजा, कइसे बइठल रहूँ हम।
‘हम’‘हम’के टक्रउअल, में हारत कोन देखम् हम॥15॥

सुनीध बेबस्था करऽ तू, पहुँचऽ जल्दी बज्जि देस।
सुन्दरि कइसन अम्रपाली, दिल पर देलक ठेस॥
दिल पर देलक ठेस, रूप-गुण आ नयन ओक्कर।
जल्दी जा बोलाबऽ, ऊ देखम जउबनओक्कर॥
जोर लगाबऽ कसकऽ, काम जरूरत होएत सिद्ध।
मुदा कौन सुनइअ इ, खाए में लग्गल सुनीध॥16॥

मंत्री सुनीध अनठिएले, मछरी-पूरी तोरइअ।
खा-खाकऽ दलबूट तऽ, मदिरा तनियक लेईअ॥
मदिरा तनियक लेईअ, घड़ी न देखे हरबर में।
खाँटि देबे दोस के, दोष न बूझे पनगर में॥
कहलक राजा लिक्खे, राजा विशाल कन पतरि।
पतरि बदले गुप्त गमन्, रेला बतएलक मंत्री॥17॥

पीकऽ आसब अजातशत्रु, लागल ढक्करे खूब।
मंत्रि डरे पकड़इअ न, हए ओहो उब-डूब॥
हए ओहो उब-डूब, कुच्छो न ओक्करा सुझइअ।
सम्हरे कइसे हाथी, खूब ओहो तलमलाइअ।
हकरइअ, उ कनइअ, कि करम अब भइया जीकऽ।
पकड़इअ कान मने-मन, गोर धरम न हिया पीकऽ॥18॥

हए लओका लग्गल् लउके, ढनढ़न करइअ मेघ।
बन बकार हए मंत्री के, बर्हे न तनको डेग॥
बरहे न तनको डेग, कखनि से उ हाथ मइलइअ।
आउर अजात् आगु आ, ओक्करा धौल जम्बइअ।
माङे आउरो दारू, अम्रपालि ला छटपट करे।
देखऽ दारू पीकअ, लोग बनल अब लटपट् हए॥19॥

गिर परकऽ हुअँइ सुत गेल दून्नो।
हाथ आएल न ओक्करा कुच्छो।
देखऽ उ दुष्ट अब कि करइत हए।
जग्गल परल सुनीध तकइत हए॥20॥