आम्रपाली / विचार / भाग 3 / ज्वाला सांध्यपुष्प
नारी न हए खाली शकुंतला।
कवि कालिदास के कठिन कल्पना॥
रहइअ उ हरदम केस खोलले।
दौपदी सन कीरिया खएले॥19॥
श्रद्धा सन हिरदय रखइअ उ।
उर्वशी जकता खूब खिलइअ उ॥
बुद्धि रखइअ इ सरस्वती नाहित।
क्रोधो करइअ काली नाहित॥20॥
सीता सन् हरण ओक्कर होइअ।
सती सन मरण ओक्कर होइअ॥
बन केकई उ रण में जाइअ।
साहस साबित्री सन करइअ॥21॥
कोइली बन कुहकत उ मन में।
मोरनी सन नाचत उ बन में॥
बन चकोर उ इन्जोर के ताके।
फूल उ ओरहुल सन गमके॥22॥
एकरा खातिर जान देबे के।
युद्ध हए निश्चित भाव लेबे के॥
सम्मान बज्जी सऽ पएतन तखनि।
दुश्मन के घेंट उ कटतन जखनि॥23॥
लक्ष्मण मुरछएलन एकरा लेल।
रामो कनलन जेक्करा लेल॥
लएलन पहाड़ हनुमान अखनि।
डाहलन लंका के उ तखनि॥24॥
अज्जु अभिमन्यु अब कट गिरइअ।
पुतरो भीम के उ मर जाइअ॥
इ नारी-इज्जत के झाँपे ला।
केशब के पड़लन आबे ला॥25॥
शिवालय पर जब हमला होइ’।
रक्षा लेल हिन्दू हजार कटइ’॥
बचबइअ उ हरदम पशुधन के।
नारियो हए उ प्रतीक धर्म के॥26॥