आम्रपाली / विचार / भाग 4 / ज्वाला सांध्यपुष्प
नजर नारी पर जे रखे ओछ।
ओक्कर काटऽ तु अखनी मोछ॥
जनिहऽ न हए, उ भाई दुर्योधन।
हए जयद्रथ, कर्ण आकि दुस्सासन॥27॥
नारी नर्त्तकी, हए उ सरस्वती।
विद्या-बिचार से भरल गण्डकी॥
हरिण सन ऊ हिरदय में रम्मत।
बन अक्षर ऊ जीभो पर बस्सत॥28॥
आँख में सूतत काजर बनकऽ।
मन में घूमत बादर बनकअ॥
करत रक्षा अप्पन घेंट कटाकऽ।
कनबो न करत खून चुआकअ॥29॥
अम्रपाली पर नाज हए हम्मरा।
बज्जी संघ के ताज ऊ बरका॥
हृदय के ओक्कर पुकार सुनलन।
लोग सऽ एक्कर जयकार कएलन॥30॥
अन्तिम फइसला संसद कएलक।
मग्गह-सङ युद्ध के निर्णय कएलक॥
जखनि चर्हाई उ करत कसाई।
तखनि ओक्करा सङ होत लड़ाई॥31॥
मदत मङलन मिथिला से, पतरी भेजकऽ अखनी।
देबऽ केत्ता अश्व-रथ-गज, बोलऽ भेजबऽ कखनि॥32॥
संसद भेल स्थगित कहकऽ, आफत हए ई बेरि।
गरज उट्ठत कखनि व्याघ्र, बज्जत कखनि रणभेरि॥33॥