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आम्रपाली / विरह / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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दोसर रात
लउटल अम्रपाली राजमहल से तलमलाइत
इ कइसन बात
नर्त्तकी के मना करहू पर
नृत्य के उत्कर्ष पर लाबे लेल
मनमत्त सामंत आसब से भरल पात्र
ओक्करा मुँह में लगा देलक
अम्रपालियो अल्हड़ ऊ
सब्भे के बता देलक
कि नाचल केन्ना जा हए
आ आसब केन्ना पीअल जा हए
नाचल अइसन कि बादर छएलक अकास में
भँओरा गुनगुनाएल मधुमास में
लग्गल पीआस अम्रपाली के
फेरू मिलल आसब
पानी जकता
एक्के सोआँस में
गटगट ऊ पी गेल
केतना प्राण तुरंत जी गेल।

इन्जोरिया के चान उग्गल
लजाएल देह सिकुरएले
लजउनी सन
अब जुआनी आ गेल ओक्करा में
इन्जोर बर्ह गेल
सब पर ताके
नाचे-बइठे
कखनियो करिया केश के
उघाड़ कऽ छितराबे
कखनियो अप्पन आँख के
छूरा-सन सब पर चलाबे
तऽ कखनियो भौं के
कमान बना तीर चलाबे।

अब हबा चलइअ धीरे-धीरे
कोनो एक्कर न होएत मीत रे
कोइली नाहित इ गीत गबइअ
कोइ न एक्कर अर्थ बुझइअ
अकाश में अखनी बादल छएलक
हबा लग्गल सन-सन बहे
अम्रपाली के दिल के
असारह् के बरखा पिघलएलक
ज्वालामुखी के याद आएल
इ मधुयामिनी में
राजमहल पर गाज गिरल
भरल महफिल में
उमसइत जमानी के छोड़
अम्रपाली आइ असगरे

घबइल चिड़ई-सन
अप्पन खोंता दीस
उड़इत चल देलक
सामंत सऽ
भिखमङ लेखा
करेजा पर हाथ रक्खले
ललुआएल रह गेल
कोनो कुच्छो न बोल्लक।

सब पियासल सामंत सऽ
चुपचाप अप्पन अघाएल
घोड़ा से लग्गल रथ पर
बइठ अप्पन-अप्पन घर पहुँचल
पहुँचल अम्रपाली घ्ज्ञर
बइठल न कि
पिछवारी में असारह् के पहिला लउका लउकल
इन्जोरिया के घेरलक
बदरबा अन्हार कएलक
आ बरसा के बून
पट-पट करे लग्गल
अम्रपाली तनियक डेराए लग्गल
हाथ में बीणा लेलक
दीया जरइअ घर में
मुँह तिताएल हए जहर से
उमकइअ न तनको उ
आई हरिण जकता
बस अँउरी नचइऽ नोकर जकता
हिया में उट्ठल अन्हर ओक्करा

कइसे इ सम्हारे एक्करा
केत्ता दिन से बरसएलक ऊ
आइ ई एकात में बइठ कऽ कानत
सुक्खल हवा में
संगीत के खूब सानत
वैशाली समुच्चा मनाएत एक्करा
तइयो इ न मानत।
संसार इ केत्ता सुन्दर हए
अकाश बड़का गो
खूब गहिर इ समुन्दर हए
प्रेम के अर्थ, मानु मौका हए
न तऽ मानऽ
एहो एगो इ बड़का धोखा हए
सुरूज के देखऽ रोज अबइअ
चान भलही तनि देर करइअ
हम्मर सुरूज कहाँ गेल बिला
रसगर फूल से काँटा भला
अब मेघ बरसे लग्गल
अम्रपाली सूतल तकइअ अब
की-की कखनी से सोचइअ अब।