आम्रपाली / वैशाली गमन / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प
गङा सूतल हए रात पसरल
पानी पर भुरूकवा डोले
चान जग्गल उप्पर हँसे रहसे
चिरई चुप्प पानी बोले॥1॥
उप्पर जगमग करे इन्जोरिया
जइसे लगइअ देवारी
नइआ ससरइअ इ सोचइते
छुट्टल देस आगु वैशाली॥2॥
खूब जगइत हए अखनि तक ऊ
आन्हर, प्रेमी, चोर, डाकू
असमससान में रहइअ सूतल
मरल मुर्दा पीले दारू॥3॥
बहे पूरबे पच्छिम नद्दी लम्मा
चले नइआ उत्तरे दीसा
बइठल कोन देस के इ पन्छी
हए आन्हर खएले नीस्सा॥4॥
नइआ पर से उतरल अदमी
जइसे चिरई खोंता से।
तुरंते अप्पन उ रूप बदल्लक
लगएलक दार्ही मोचा के॥5॥
टोटमा कएलक, चन्नन कएलक
हए बारलक दिया-बाती
कएलक प्रनाम इ धरती के
पटककऽ अप्पन निच्चा छाती॥6॥
राम जौरे शिव के सुमिरलक
सुमिरलक धाम चारो के
काम बने के रस्ता में आगु
भिरे के परत हजारो से॥7॥
साम-दाम के किताब लेले
दण्ड-भेद् के लाठी जौरे
जे जइसन जजमान मिल जाएत
कोनो बिध ओकरा थूरे॥8॥
न उप्पर गेरूआ बस्तर निम्मन
न हिया में जग्गह हए नीच्चे
राम-नाम के मंतर से अब
चद्दर सुक्खे, अप्पने भीङे॥9॥
मुँह में मध हए हाथ में लाठी
धएले बिदेह के नाती
चलल जा रहल हँ एक सूर से
जइसे पुरान एहो घाती॥10॥