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आम्रपाली / वैशाली गमन / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प

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फूल के देख भौंरा दउरे
कूदे हरदम पानी नीच्चा
कोन धातु के चम्मुक हए् इ खिंच्चल
जाइअ उत्तर धु्रब के दीशा॥11॥

चेचर घाट से महुआ पहुँचल
उ अन्जान एक्के घंटा में
मिलएले हए दिल में जहर उ
जइसे गरदा आँटा में॥12॥

कखनी दउरे, भागे अखनी
अब चलइअ धीरे-धीरे
सुस्ताइअ न उ पेड़ो तर अखनि
चलल जाइअ बाया तीरे॥13॥

पुष्करिणी के भिन्डा पर बइठल
कए-कए किसिम के पेड़ो हए
पेड़ के कन्ना पर नुकाएल
भुक्खल कोनो शेरो हए॥14॥

सुरुज माथा पर बोलइत हए
मइली पग्ला-सन दउरइअ
पोखर में कोनो लोग न हए
एगो जुवती ऊ निङारइअ॥15॥

पानी के दरपन बूझ कऽ ऊ
अरपन करइअ ई जुआनी
ओ मे रूप देखइअ उर्वशी के
कि लिखईअ कोनो कहानी॥16॥

मोटाएल कर्जा सन जुआनी
नहाए लेल अखनि तरसइअ
जे देखरे एक्कर अङ अधखुलल्
आग ओक्करा पर बरसइअ॥17॥

रहसल बिगरल सखि सऽ आएल
देखलक बइड्ल हए अम्रपालि
उठाकअ गोदी में ओक्करा
फेकलक मोति सन आली॥18॥

पुष्करिणी पुष्करिणी में डूबल
चान दिनकऽ खूब खेलइअ
सखि सऽ लग्गल बजाबे ताली
अम्रपाली उ खूब हेलइअ॥19॥