आम्रपाली / वैशाली गमन / भाग 3 / ज्वाला सांध्यपुष्प
मछरी सन हेले ऊ छँउरी
गगरी परल हए भिन्डा पर
देखइअ बाघ पेर पर छब्भकल
जेन्ना काग् कोइलि-अण्डा पर॥20॥
केश करिआ कुच-कुच अन्हरिया
जइसे साओन के बदरी
उड़े तऽ चान के गहन लग्गइअ
हटे तऽ बरे लग्गइअ बिजुरी॥21॥
भरल माङ अम्रपाली के ई
कहइअ खिस्सा नारि-क्रान्ति के
लाल रङ के डरीर न बूझऽ
ई रस्ता बतबइअ शान्ति के॥22॥
हए भौं अउँन्हल दउरी नाहित
आँख-मछरी के ई झँपले
उज्जर पोखरी के पानी में
करिआ मछरि तइयो उछले॥23॥
नाक सुग्गा के चोंच सन ओक्कर
मुँह पर रखले हए नेमचुस
खाइअ न तरसबइअ सबके
उल्टे बर्हे युबती के रूप॥24॥
आँख चिड़ई असमान में, हँस-हँस कूद नचइअ।
करिआ बीच बदरिया में, चुप्प-चुप्प कवित्त बँचइअ॥
चुप्प-चुप्प कवित्त बचइअ, पर्हीं बाला पर्हइअ।
काहिल सऽ अजात सन, देख-देखक कुर्हइअ॥
आबे के हए परदेशि, दूर से ऊ करे चाँक।
कह न सक्कत ठोर्ह जे, बात बोलत हुन्कर आँख॥25॥
चोटी ई अम्रपाली के, डोले जइसे साँप।
कइसन्-कइसन् महारथि के, जाइअन हिआ काँप॥
जाइअन हिआ काँप, लगइछन डोले निस्सा में।
लगतन हुन सपनाए, चोटी आबे हिस्सा में॥
पंचबाण से लैस, हए उ बन्दूक के टोंटी।
मुख-मणि-ज्वाला के, दिनकऽ अगोरइअ चोटी॥26॥
नथिया निहुरल ठोर्ह पर, पिअइअ रसगर फूल।
देख इ मग्गह राजा के, हिआ में उठइ शूल॥
हिया में उठई शूल, फूल खुशी के उग गेल।
छूकऽ गाल मने-मन, अजातशत्रु धन्न हो गेल।
कास में नुकाएल उ, आस में होएल रतिया।
पिटइ’ छाती छएला, कइसे मिल जाए नथिया॥27॥