आम्रपाली / वैशाली गमन / भाग 5 / ज्वाला सांध्यपुष्प
अम्रपालि के हँस्सी से पलभर।
चान उतर गेल इ धरती पर॥
आँख चोन्हराएल उ बुर्हबा के।
गिरल धरती पर उ हरबरा के॥36॥
अकाश थरथराए धरति हिले।
अम्रपालि के दिल लग्गल पिघले॥
बुर्हबा गोर लगइअ ओक्करा।
उ अब पानी पिबईअ एक्करा॥37॥
पानी पिबइअ उ गगरी से।
बुरह्बा ओक्करा छुए टङरी से॥
पानी भीङ कऽ मोंछ गिर गेल।
भरल गगरी से उ नहा गेल॥38॥
बुर्हबा खरा भेल साँप नाहित।
युबति थरथराए गाछ नाहित॥
सूतल नाग पर जल गिरल।
उ खच्चर खूब फुफकारे लग्गल॥39॥
अम्रपालि के बाँह पकरलक।
पानी पर ओकरा इ पिछलएलक॥
राजा गिरल चारो नाल से।
युबती काँपे देख काल के॥40॥
दार्ही उर गेल पोखरी में।
खूब खोजइअ उ करगी में॥
इ देखलक जुआन हए कोनो।
भुत, बएताल कि राकस कोनो॥41॥
‘साँचे सपना देखलि मइआ।
कोन लुच्चा बन आएल बहरूपिआ॥’
गगरी उठएलक इ मारे ला।
तइआर न हबे उ भागे ला॥42॥
पिछल गिरे से रूप बदल गेल।
चोट लग्गे से होश बदल गेल॥
कल जोड़लक, माथा लिबएलक।
दरिआव-पार देश बतएलक॥43॥