आम्रपाली / सपना / भाग 1 / ज्वाला सांध्यपुष्प
रात अन्हरिया के अधरतिया
निःशब्द लोग-जाल, सूतल गइया॥
चान पर तनको सान न हए।
मारे हुलकी भुरूकवा, जान् न हए॥1॥
तरेगन छिटाएल राइ नाहित।
सतभइया चलइअ मुर्दा नाहित॥
रंथी पर एक्को लहास न हए।
बरसत मेघ, इ हहास न हए॥2॥
कास बिआए ला बइठल हए।
धरती पियासले सूतल हए॥
ऊप्पर से अब मेघ कूथइअ।
नीच्चे पंछी सऽ चऊँकइअ॥3॥
चउँके रात कुमार छउँरी सन।
नीन में भूलल रतिमग्ना सन॥
सपनाइअ, डेराइअ रेङ-रेङ।
बाज बन रेगदाबे कोन बेङ॥4॥
आँख के पपनी जाम झँपले।
जेन्ना मइली चान के हपले॥
आँख पर केस जट्टा सन गिरल।
समुन्दर पर हए पनसोखा बनल॥5॥
बाहर बउखी बहइअ सनसन।
भीतर चूड़ी करइअ खनखन॥
खुलल आँख जेन्ना कम्मल फूल।
सपनाइअ कि कुछ जाइअ भूल॥6॥
आँख मइले उ मुँह बिचकाबे।
बइठ कऽ सुन्दरि बेना डोलाबे॥
थर-थर काँपे खूब डेराए।
परइअ पानी, पसिन्ना नहाए॥7॥
सपनएलक कथि उ देखलक कथि।
भरइअ उ सिसकी, असगरे हति॥
कोन जङ्ल के बाघ हए, याद न।
कहाँ लग्ग गेल आग, चिन्हॉस न॥8॥
दाग लग्गल एगो उप्परका चान।
सदा भरल रहे इ हम्मर माङ॥
कोनो विषधर आबे, डर न हए।
पर पिया परदेशी, घर न हए॥9॥