आम्रपाली / सेवा / भाग 2 / ज्वाला सांध्यपुष्प
सोआगत भेल बहुत नब-दुल्हिन सन
बैशाली में सबतर आई अम्रपाली के।
जग्गह-जग्गह फटक्का फोड़इअ अदमी
जरबइअ खूब दिया जेन्ना देवारी के॥
नारी सऽ नर से अब ऊप्पर बुझईअ
पीट्ठी ठोकइअ खूब उ अप्पन आली के।
कोनो कहइअ प्रतिमा सावित्री के एक्करा
तऽ कोनो बुझईअ अबतार काली के॥9॥
नाथ दीहऽ हम्मरा जलम फेरू तऽ दीहऽ
बिद्या, बिचार, बुद्धि एनाहिते इ हम्मरा।
सेवा करू कखनियो मानवता के हमहूँ
कहलन रानी पसार अप्पन अँचरा॥
श्री सत्यनारायण के सुमीरलन रानी
भगवान भरतन दुख के सब्भे गबरा।
देश के उबारऽ, तू पिन्डोग से बचाबअ
बर्हे धन-जन अब हए एहे असरा॥10॥
छोड़कऽ असरा भगवान के, बनाबऽ तू
जग्गह-जग्गह सराय आ आरोग्यशाला।
जे में टिके भुलल यात्री हो निरभय
आ इलाज करा रोगी भगाबे ज्वर काला॥
बूरह, बिधबा, बताह, बालक सब के लेल
बनाउ बैशाली में निम्मन खूब शिबाला।
चारो ओरी से रहत अब देश सुरक्षित
परत न कनहु से अब एपर पाला॥11॥
रानी होएल, तइआर बनाबे खातिर
सराय आउर अस्पताल खूब जल्दी से।
बने लग्गल बिधबा-निबास हीयाँ सब
बाल-बिहार बन रहल अब तेजी से॥
बृद्ध निश्चिन्त होकअ बितएतन जिनगी
डेरएतन न तनको अब सरदी से।
अम्रपाली सेवा करत सबके बिना स्वार्थ
बिनती करत रक्षा लेल उ धरती से॥12॥
मंदिर बनल, अस्पताल बनल, बनल
खूब सराय, रहे लेल हीयाँ चारो ओरी।
घर-घर सूत कटाइअ, अब जड़ी-बूटी
पिसाइअ, तऽ कहँई रगड़ाइअ रोरी।
सब्भे तरफ हए शान्ति, हल्ला-गुल्ला न हए
मार-पीट न करे, करे न कोई चोरी॥
अमन-चैन हए इ फइलल सबतर
लूट करे न कोनो, करे न कोई बलजोरी॥13॥
बम-बम के अबाज से इ मंदिर-मंदिर
लग्गल गनगनाए सबतर भइया।
तकली नचइअ अब चरखा चलइअ
गाँव-गाँव में बस्त्र बनबइअ मइया॥
जात-परजात के झगड़ा मेटा गेल अब
तऽ रहल कोनो बात के डर न दइया।
स्त्री-पुरुष हो प्रसन्न नचइत हथ अब
डुबत न कहियो सुख-शान्ति के नइआ॥14॥
सेवा से मुक्त हो अम्रपाली।
आम्रवन में बइठल खाली॥
पएरा ताके उ तथागत के।
न्योता देल रहे स्वागत के॥15॥