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आम अमलिया की नन्ही-नन्ही पतियाँ / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आम अमलिया की नन्ही-नन्ही पतियाँ

निबिया की शीतल छाँह

वहि तरे बैइठीं ननद भौजाई

चालैं लागि रावन की बात ।

तुम्हरे देश भउजी रावन बनत है

रावन उरेह दिखाव

तो मैं एतना उरैहौं बारी ननदी

जो घर करो न लबार


भावार्थ


आम और इमली की नन्हीं-नन्हीं पत्तियाँ हैं

नीम की शीतल छाया है

उसी के नीचे बैठी हैं ननद भौजाई

तभी रावण की बात चलने लगी ।

--'हे भावज, तुम्हारे देश में रावण बनता है

रावण का चित्र खींचकर दिखाओ ।'

--'चित्र तो मैं अवश्य खींचकर दिखाऊँ, प्यारी ननद!

यदि घर में तुम इसकी चर्चा नहीं करो ।'