भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आम का पना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मीठा है खट्टा है,
कुछ-कुछ नमकीन।
पी लो तो तबियत,
हो जाए रंगीन।
आम का पना है यह,
आम का पना।
चावल संग खाओ तो,
बहुत मज़ा आता है।
गट-गट पी जाओ तो,
पेट सुधर जाता है।
पापा तो पी जाते,
पूरे कप तीन।
आम का पना है यह...
दादा को दादी को,
काँच की गिलसिया में।
मैं तो भर लेता हूँ,
मिट्टी की चपिया में।
आधा पर मम्मी जी,
लेती हैं छीन।
आम का पना है यह।