भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आम की तरह बौराए हैं हम / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
वैसे तो उदास हैं हम
कर्महीन
बदहवास हैं हम;
फिर भी
फगुनाए हैं हम,
इस उम्र में भी
आम की तरह बौराए हैं हम,
चिरकुटिया चोला
बसंती बनाए हैं हम,
फूलों की बरात का
मौसम लाए हैं हम,
चिड़ियों के साथ
हर्ष से गुनगुनाए हैं हम,
फगुनाए हैं हम-
आम की तरह बौराए हैं हम
रचनाकाल: २३-०३-१९७६