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आया जाड़ा / मुस्कान / रंजना वर्मा

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आया जाड़ा आया जाड़ा॥

रिमझिम बूँदें जल के धारे
बदल ने जी भर बरसाये।
बची खुची बूँदों के टुकड़े
अँजुरी में भर-भर ढलकाये।

सूरज ने चादर को झाड़ा।
आया जाड़ा आया जाड़ा॥

बदल के बच्चों सँग सूरज
लगा खेलने आँख मिचौली।
लगी ठंड तो ओढ़ रजाई
तुरत बन गया बाबा मौली।

बच्चे पढ़ने लगे पहाड़ा।
आया जाड़ा आया जाड़ा॥

चौपालों पर आग जला कर
लगे तापने बूढ़े बच्चे।
सब बढ़ चढ़ कर लगे सुनाने
किस्से कितने झूठे सच्चे।

चूहे ने था शेर पछाड़ा।
आया जाड़ा आया जाड़ा॥