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आया दीपों का त्योहार / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
लिए रोशनी की सौगात
आया दीपों का त्योहार।
सजे दीप जगमग-जगमग कर
जैसे आसमान में तारे,
उड़ने लगे हवा में ऊपर
बड़े वेग से राकेट सारे,
लूटा रहे दाने मोती के
जगह-जगह पर कई अनार।
बच्चे हाथों में ले दीपक
झट-से छज्जे पर चढ़ जाते,
जहाँ-जहाँ अँधियारा होता
वहाँ-वहाँ पर दीप जलाते,
हाथों में फुलझड़ियाँ जलती
मुख पर खिलती नई बहार।
दीप-दीप से दीप जलाकर
ज्योति पर्व जो सदा मनाते,
वही ह्रदय में प्रीत जगाकर
सबको अपना मीत बनाते
जो जग में लाता उजियारा
सभी उसे करते हैं प्यार।