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आया न मेरे हाथ वो आंच किसी तरह / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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आया न मेरे हाथ वो आंचल किसी तरह
साया मिला न धूप में दो पल किसी तरह
मैं हूं कि तेरी सम्त मुसलसल सफ़र में हूं
तू भी तो मेरी सम्त कभी चल किसी तरह
यूं हिज्र में किसी के सुलगने से फ़ाइदा
ऐ ना-मुरादे-इश्क़ कभी जल किसी तरह
होंटों पे तेरे शोख़ हंसी खेलती रहे
धुलने न पाये आंख का काजल किसी तरह
चलने कभी न देंगे दरिन्दों की हम यहां
बनने न देंगे शहर को जंगल किसी तरह