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आया वह याद हम को बोसा क़ज़ा से पहले / उदय कामत

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आया वह याद हम को बोसा क़ज़ा से पहले
लम्हे नवाज़िशों के जैसे सज़ा से पहले

आया न बाज़ आदम क्यों हर ख़ता से पहले
तू कर सवाल ये अब वाइज़ ख़ुदा से पहले

अंदाज़-ए-इश्क़ उनका देखो तो क्या अजब था
करते रहे जफ़ा वह हर इक वफ़ा से पहले

जब निकहत-ए-सबा का पूछा सबब तो बोली
गुल पुर-शमीम था इक बाद-ए-सबा से पहले

जब पी चुका था मैं ग़म और ज़िन्दगी की तल्ख़ी
लाज़िम था अब के पीना मय को दवा से पहले

उसकी बस इक झलक से ये नब्ज़ थम चुकी थी
जुम्बिश लबों पर आई रोज़-ए-जज़ा से पहले