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आयी जो है आफात की बरसात ने मुझे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
आयी है जो आफात की बरसात ने मुझे
जीने नहीं दिया कभी हालात ने मुझे
सूझा ही नहीं हाथ को जब अपना हाथ ही
इतना न सताया था किसी रात ने मुझे
लड़ते रहे हैं ख़्वाब खुशी नाखुशी के यूँ
सोने दिया न बरसों इसी बात ने मुझे
हमदर्दियाँ यहाँ भी मुझे ही फँसा गयीं
छोड़ा न किसी काम का जज़्बात ने मुझे
खुद को समझ रहे थे हम तो आसमान में
दरपन दिखाया आप की औकात ने मुझे
जब आप मिल गये तो मिले रोज़ बेवज़ह
हलकान किया अब तो मुलाक़ात ने मुझे
यूँ तो धड़कता रहता है दिल हर घड़ी मगर
धड़कन सिखा दी प्यार की सौगात ने मुझे