भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आयी जो है आफात की बरसात ने मुझे / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आयी है जो आफात की बरसात ने मुझे
जीने नहीं दिया कभी हालात ने मुझे

सूझा ही नहीं हाथ को जब अपना हाथ ही
इतना न सताया था किसी रात ने मुझे

लड़ते रहे हैं ख़्वाब खुशी नाखुशी के यूँ
सोने दिया न बरसों इसी बात ने मुझे

हमदर्दियाँ यहाँ भी मुझे ही फँसा गयीं
छोड़ा न किसी काम का जज़्बात ने मुझे

खुद को समझ रहे थे हम तो आसमान में
दरपन दिखाया आप की औकात ने मुझे

जब आप मिल गये तो मिले रोज़ बेवज़ह
हलकान किया अब तो मुलाक़ात ने मुझे

यूँ तो धड़कता रहता है दिल हर घड़ी मगर
धड़कन सिखा दी प्यार की सौगात ने मुझे