आयी निशा घनेरी घनघोर है अँधेरा
आयेगा बाद इसके स्वर्णिम सुघर सबेरा
तारे चमक रहे हैं ज्यों पाँत जुगनुओं की
है रोशनी लगाती इन का सदैव फेरा
कलियाँ सिसक रही हैं देने लगीं दुहाई
भँवरा नहीं ये कोई है रूप का लुटेरा
सौंदर्य यह प्रकृति का दिल को लगा लुभाने
इसमें छिपा कहीं है अस्तित्व श्याम तेरा
है चाह जागती ये सूने हृदय नगर में
घनश्याम आप आकर कर लें यहीं बसेरा