भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आयु गीतों की होती है कवि से बड़ी / संदीप ‘सरस’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आयु गीतों की होती है कवि से बड़ी,
गीत रह जाएंगे हम गुजर जाएँगे।

हम मिलेंगे हमारे किसी गीत को,
गुनगुना लीजिएगा नज़र आएँगे।।

तेरे मन ने कभी द्वार खोले नहीं,
साँस की साँकलें खटखटाते रहे।
भावनाएं सभी बेदखल हो गईं,
द्वार पर ही पड़े छटपटाते रहे।।

तुमने ठुकरा दिया तुम नहीं जानते,
दर्द के काफ़िले अब किधर जाएँगे।

नींद की अनछुई चादरों के लिए,
स्वप्न के बोझ ने सलवटें सौंप दीं।
याद ने आपकी कसमसाकर हमें,
रात भर के लिए करवटें सौंप दीं।

अब दिवास्वप्न के साथ हम हो लिए,
वो जिधर जाएँगे हम उधर जाएँगे।

दासता बादलों की नहीं चाहिए,
प्यास को कोई पनघट मिले न मिले।
हम सलामी न दे पाएँगे सूर्य को,
दीप को कोई जमघट मिले न मिले।।

जब उजाले की होगी जरूरत हमें,
धूप मुट्ठी में हम बन्द कर लाएँगे।