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आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद(ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री

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आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद
मुसहफफ़े-इश्क़ो-जुनूँ हुस्न की आयात के बाद

ऐ वतन ख़ाके-वतन वो भी तुझे दे देंगे
बच गया है जो लहू अब के फ़सादात के बाद

नारे-नुम्रूद<ref>एक अत्याचारी बादशाह जिसने ख़ुदाई का दावा किया था</ref> यही और यही ग़ुलज़ारे-ख़लील
कोई आतिश नहीं आतिशक़दा-ए-ज़ात के बाद

राम-ओ-गौतम की ज़मीं हुर्मते-इन्साँ की अमीं
बाँझ हो जाएगी क्या ख़ून की बरसात के बाद

हमको मालूम है वादों की हक़ीक़त क्या है
बारिशे-संगे-सितम, ज़ामे-मुदारात के बाद

तश्नगी है कि बुझाये नहीं बुझती ‘सरदार’
बढ़ गयी कौसरो-तस्नीम<ref>स्वर्ग की हौज़ और नहर</ref> की सौग़ात के बाद

शब्दार्थ
<references/>