भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आयो आयो चौमासा त्वैक जागी रयो / गढ़वाली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आयो आयो चौमासा त्वैक जागी रयो।
मैं पापणीं सदा मन भरी रयो।
मेरा स्वामी को मन निठुर होयो।
घर बार छोड़ीक विदेश रयो।
हाई मेरा स्वामी जी मैंने क्या खायो।
तुमरी प्रीति से न्यारी होयो।

शब्दार्थ
<references/>