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आरक्षण / मनोज झा
Kavita Kosh से
आरक्षण स्वार्थ की पकवान है।
आरक्षण चोरों की दुकान है।
आरक्षण छीनी हुई रोटी है।
आरक्षण जबरन गलघोटी है।
आरक्षण एक रोग है।
राक्षसी भोग है।
कितनों को जलाया है।
कितनों को खाया है।
आरक्षण अभिशाप है।
अकर्मण्यता का बाप है।
भ्रष्टाचार की माता है।
दुराचार का विधाता है।
आरक्षण अत्याचार है।
आरक्षण ललकार है।
आरक्षण शोषण है।
कुकर्म का पोषण है।
आरक्षण भेदभाव है।
अयोग्यता का चुनाव है।
विशिष्ट नागरिकता है।
असमता वास्तविकता है।
आरक्षण प्रतिशोध है।
आत्म ग्लानि बोध है।
कानूनी जातिवाद है।
अक्षम्य अपराध है।
नैतिकता का पतन है।
यही मेरा वतन है?