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आरज़ू की बेहिसी का ग़र यही आलम रहा / शहजाद अहमद

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आरज़ू की बेहिसी का गर यही आलम रहा
बेतलब आएगा दिन और बेख़बर जाएगी रात
 
शाम ही से सो गए हैं लोग आँखे मूंदकर
किसका दरवाज़ा खुलेगा किसके घर जाएगी रात