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आरजूएँ जाग उठीं बे-ताब है बज़्म-ए-ख़याल / बेगम रज़िया हलीम जंग

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आरजूएँ जाग उठीं बे-ताब है बज़्म-ए-ख़याल
क्या कहूँ मैं क्या दिगर-गूँ हो गया है दिल का हाल

ऐ सनम मेरे सनम मेरे सनम तेरे बग़ैर
शौक़-ए-हस्ती है बुझा सा ख़्वाहिशें हैं पाएमाल

कब तलक बहलाऊँगी दिल को ख़यालों से तेरे
कब करेगा हाल पर मेरे करम तू ज़ुल-जलाल

क्या ख़ता मुझ से हुई मुझ को बुलाता क्यूँ नहीं
हो गया है अब तो तेरे हिज्र में जीना मुहाल

जान लेना है तो ले लेकिन बुला कर अपने घर
आम लोगों से जुदा हो मेरा तर्ज़-ए-इंतिक़ाल