भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी / आरती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   आरती का मुखपृष्ठ

आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
परसत चरणारविन्द आपदा हरी।

निरखत मुखारविंद आपदा हरी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी।
अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी। आरती..

देवन द्वारे ठाड़े रोहिणी खड़ी,
मारकण्डे श्वेत गंगा आन करी।
गरुड़ खम्भ सिंह पौर यात्री जुड़ी,
यात्री की भीड़ बहुत बेंत की छड़ी। आरती ..

धन्य-धन्य सूरश्याम आज की घड़ी। आरती ..