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आराधना होती रहे / बाबा बैद्यनाथ झा

प्रभु भक्ति नित बढ़ती रहे, यह कामना होती रहे।
श्रीकृष्ण राधे की सतत, आराधना होती रहे॥

है प्राप्त मानव योनि तो, हम कर्म सब उत्तम करें,
अपकर्म देखें सामने, तो दूर रह उससे डरें।
खल-मित्र से दूरी बनाकर, हम कुसंगति से बचें,
सत्कर्म से इतिहास स्वर्णिम, विश्व में नूतन रचें।

पुरुषार्थ चारों दे सकें, प्रभु-याचना होती रहे॥
श्रीकृष्ण राधे की सतत, आराधना होती रहे॥
हो ज्ञान-वर्धन नित्य ही, साहित्य से अति प्रीत हो,
जब छन्द की हो सर्जना, तब श्रेष्ठ निर्मित गीत हो।
हो काव्यमय पूरी धरा, इस विश्व का कल्याण हो,
सब जीव हों दुख से परे, भय आपदा से त्राण हो।

अवदान हम भी दे सकें, यह भावना होती रहे॥
श्रीकृष्ण राधे की सतत, आराधना होती रहे॥

सहभागिता बढ़ती रहे, हो प्रेम विकसित आपसी,
भ्रातृत्व हो कटुता नहीं, दें त्याग हम गुण तामसी॥
सब जीव कालाधीन हैं, तो भोगते प्रारब्ध सब,
इस श्रेष्ठ मानव योनि में, तप साधना उपलब्ध सब।

परब्रह्म से सान्निध्य हित, नित प्रार्थना होती रहे॥
श्रीकृष्ण राधे की सतत, आराधना होती रहे॥