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आरिफ़ाँ पर हमेशा रौशन है / वली दक्कनी
Kavita Kosh से
आरिफ़ाँ पर हमेशा रौशन है
कि फ़न-ए-आशिक़ी अजब फ़न है
दुश्मन-ए-दीं का दीन दुश्मन है
राहज़न का चिराग़ रौशन है
क्यूँ न हो मज़हर-ए-'तजल्ली यार
कि दिल-ए-साफ़ मिस्ल-ए-दर्पन है
इश्क़ बाजाँ हैं तुझ गली में मुक़ीम
बुलबुलाँ का मुक़ाम गुलशन है
सफ़र-ए-इश्क़ क्यूँ न हो मुश्किल
ग़म्ज़-ए-चश्म-ए-यार रहज़न है
बार मत दे रक़ीब कूँ ऐ यार
दोस्ताँ का रक़ीब दुश्मन है
मुज कूँ रौशन दिलाँ ने दी है ख़बर
कि सुख़न का चिराग रौशन है
घेर रखता है दिल कूँ जामा-ए-तंग
जग मिनीं दौर-दौर दामन है
इश्क में शम्म: रू के जलता हूँ
हाल मेरा सभों में रौशन है
ऐ 'वली' साहिब-ए-सुख़न की ज़बाँ
ब़जा-ए-मा'नी की शम्मे-रौशन है