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आरे आरे कागा सगुनिया सगुन नोत भाखब रे / मैथिली लोकगीत
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आरे आरे कागा सगुनिया सगुन नोत भाखब रे
कागा रे मोर घर उचित कल्याण कहाँ-कहाँ नोतब रे
दर जे नोतब दिआद लोक आओर समाज लोक रे
पिया हे अहांक बहिन नहि नोतब कि भागिन कहाँ आओत रे
दरहि नोतब दिआद लोक आओर समाज लोक रे
धनि हे एक नहि नोतब अहांक नैहर की सार कहाँ आओत रे
घर पछुअरबा मे नउआ कि तोहें मोरा हित बंधु रे
नउआ रे झटपट चिठिया तों लैह कि खबर जना दैह रे
हाथी चढ़ल अबथिन भइया आओर भतिजबा रे
ललना रे राम खसला मुरछाइ कि सार कोना जानल रे
पीअर वस्त्र झमकबिते आबथि सीता मन बड़ हरखित रे
ललना रे पियबा के देखल मुरझाएल कि आओर मुसुकि चलू रे