भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरोग्य / नवनीता देवसेन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नवनीता देवसेन  » आरोग्य

सिर्फ़ तुम स्वस्थ हो जाओगे
मैं दे दूंगी अपनी कोजागरी का चांद
सफ़ेद दीवार का मयूरकंठी आलोक
सौंप दूंगी पिछले साल मर गए पक्षियों की ममता
और अगले साल आने वाले केले के पेड़ के सपने
जाते-जाते सभी ने यही तो कहा था
कुंती नदी के गेरुए पानी ने
अपने हरे छाया-कंपित ठण्डे गले से मुझसे कहा था
दुर्बल सुनहले बैलों वाली गाड़ियों ने
थके कीचड़ सने गले से मुझसे कहा था
रीतते हेमंत की बूढ़ी हरी पत्तियों ने
आसन्न मृत्यु की खरखराहट भरी आवाज़ में मुझसे कहा था
तुम्हारे स्वस्थ होते ही वे लोग फिर लौट आएंगे
यहाँ तक कि
तुलसीवट के जिस दिये में तुमने
मेरा चेहरा देखा था, उसे भी बहाकर
एक उजला स्तव बन जलती रहूंगी मैं तुम्हारे सिरहाने
आएँ वे लौट आएँ
जो हमेशा से चले जा रहे हैं यहाँ से वहाँ
उखाड़ दी गई एक गुच्छा कच्ची दूर्वा की तरह
तुच्छ, ऊष्ण, कातर
मैं पोंछ लूंगी तुम्हारी तकलीफ़ें:
इसके एवज़ में ईश्वर, इसके एवज़ में आए
तुम्हारा वांछित आरोग्य


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी