आरो की करियै? / गुरेश मोहन घोष
बेटी कॅे जोरी केॅ,
राखै छी खुट्टा में।
देखै में गोरी छेॅ-
फूलो छै जुट्टा में
भावै छी रामै रंग दुलहा जी करियै।
आरो की करियै?
बाबा केॅ पूजै छी
गेठी संग जोड़ी केॅ।
फूलो चड़ावै छी-
बेल पात तोड़ी केॅ
गंगा नहाय केॅ रोज जोॅल भरियै।
आरो की करियै?
डीहोॅ पर गेलां जी,
दरियापुर होलोॅ।
पैसौ तेॅ नै छेॅ...
कहेॅ टेंट खोलोॅ।
गहनौ तेॅ नै, हम्में की-की धरियै?
आरो की करियै?
धोती अठहथ्थी छेॅ,
बरै तर किनलेॅ छी।
सूतेॅ चटाईयो...
खजूरै के बिनलेॅ छी
भात भेलै सपना-सत्तू दुपहरियै...?
आरो की करियै?
बेटा स्कूली नै,
उमर दस साल छै।
बेटी तेॅ कामै छै...
बहू... बेहाल छै!
नूंगा चरे, लँहगा नै...मुन्ना केॅ धरिहै,
आरी की करियै?
एक्के तेॅ घोॅर छेॅ,
ऊपर की खोॅर छेॅ?
चूअै छेॅ माथा पर,
टप-टप ई झोॅर छेॅ
बगलै में पक्का छै... देखी की जरियै?
आरो की करियै?
मनोॅ बेचैन छेॅ,
करी... बर्बादी जी।
बेची केेॅ करी लौं...
मुन्नी के सादी जी।
तैय्यो दहेज लेॅ की लूटौं तिजोरिये?
आरो की करियै?
कोरी उभर के...
बेटी केॅ छोड़ी।
कुमारे समाजोॅ में,
हाथ दोनों जोड़ी...
मोॅन करेॅ जरी जांव या डूबी केॅ मरियें,
आरो की करियै?