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आलमे-ख़ाक में हम पर सभी दर बन्द हुए / कांतिमोहन 'सोज़'

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आलमे-ख़ाक<ref>नश्वर संसार</ref> में हम पर सभी दर बन्द हुए ।
रौनक़े-बज़्म तब इस क़ौम के फ़र्ज़न्द हुए ।।

आगे दीवार के भी कान हुआ करते थे
आजकल कान भी दीवार के मानिन्द हुए ।

पारसा<ref>पवित्र</ref> ऐसे कि शैतान निगूं<ref>लज्जित</ref> हो जाए
हिन्द की कोख से क्या ख़ूब हुनरमन्द हुए ।

ताज़ियाने हैं शरीयत के<ref>धर्मशास्त्र के कोड़े</ref> सभी हाथों में
बेटे शैतान के क़ानून के पाबन्द हुए ।

हम हैं महकूम<ref>आदेश माननेवाले</ref> खुदी और भगत<ref>खुदीराम बोस और भगत सिंह</ref> के वारिस
हुक्मरानों<ref>आदेश देनेवाले</ref> में बिभीषण हुए जयचन्द हुए ।

अब तो सब क़र्ज़ तुझे देने पे आमादा हैं
ऐ वतन चाहनेवाले तेरे दहचन्द<ref>दसगुने</ref> हुए ।

फूल काग़ज़ के बनो सोज़ का पैग़ाम सुनो
जो गुले-तर थे कभी आज वो गुलकन्द हुए ।।

शब्दार्थ
<references/>