आलमे-नासूत की आधी हक़ीक़त जान कर / रवि सिन्हा
आलमे-नासूत<ref>इहलोक, दुनिया (this world)</ref> की आधी हक़ीक़त जान कर
ज़िन्दगी काटी उन्होंने ग़ैब<ref>रहस्य, अदृश्य (Mystery, Invisible)</ref> को ईमान कर
वो यक़ीनी तौर पर थे आलिमे-ख़ल्क़ो-हयात<ref>सृष्टि और जीवन के मनीषी (Thinker/knower of Universe and Life)</ref>
शुब्हे में डूबे हैं अपने आप को पहचान कर
ये भी क्या किरदार आ बैठा फ़साने में तिरे
लफ़्ज़ शर्मिन्दा है अब अपना ही मा'नी जान कर
मो'जिज़े-जम्हूरियत<ref>लोकतंत्र के चमत्कार (Miracles of democracy)</ref> की जानिये तकनीक भी
पूजिये शैतान को फिर भी फ़रिश्ता मान कर
ख़ाक के पर्दे से निकला आलिमे-आलम हुआ
वो मगर कहते हैं तू तो इल्म की दूकान कर
लौट तो आये हैं वो तारीख़ के मैदान से
रोज़ कहते हैं मगर प्याले में इक तूफ़ान कर
इल्म हो इन्साफ़-सू<ref>तरफ़ (towards)</ref>, इन्साफ़ की जद्दोजहद
और हर जंगआज़्मा<ref>योद्धा (Combatant)</ref> को माइले-इरफ़ान<ref>बुद्धि और विवेक की तरफ़ आकृष्ट (Attracted to Reason and Wisdom</ref> कर
मुल्क की तारीख़ है तहज़ीब की बौनी फ़सल
आप फिर सो जाएँ किन यादों की चादर तान कर
नक़्शा-ए-अज़्मत<ref>महानता (Greatness)</ref> क़दीमी<ref>पुरातन (Ancient)</ref> खेंच जम्बूदीप का
चीन तो होना नहीं है हिन्दो-पाकिस्तान कर