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आली री, उमड़ि-घुमड़ि घन आबय / मैथिली लोकगीत
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
आली री, उमड़ि-घुमड़ि घन आबय
दादुर मोर शोर कर चहुँ ओर
बिजुरी चमकि डराबय
छन-छन पल-पल कल ने पड़त हैं
जिया रहि-रहि मदन सताबय
हरि निरमोही भेला हृदय कठोर
परबस भय तरसाबय
ककरा कहब के जाय समझाबय
विरह वारिधि सँ बचाले
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस के
राधा हरि गुण गाबय