आली हौँ गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ ,
तापै तू परै है पदमाकर तनैनी क्योँ ।
व्रज वनिता वै वनितान पै रचैहैँ फाग ,
तिनमे जो उधमिनि राधा मृगनैनी योँ ।
छोरि डारी केसर सुबेसर बिलोरि डारी ,
बोरि डारी चूनरि चुचात रँग रैनी ज्योँ ।
मोहि झकझोरि डारी कचुँकी मरोरि डारी ,
तोरि डारी कसनि बिथोरि डारी बैनी त्योँ ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।